Lord Adinath , was the first tirthankara of Jainism. He is also known as Lord Rishabdev. For our readers, please find Shri Adinath Chalisa.
Shri Adinath Chalisa – Hindi
॥ दोहा॥
शीश नवा अरिहंत को, सिद्धन को, करूं प्रणाम ।
उपाध्याय आचार्य का, ले सुखकारी नाम ॥
सर्व साधु और सरस्वती, जिन मन्दिर सुखकार ।
आदिनाथ भगवान को, मन मन्दिर में धार ॥
॥ चौपाई ॥
जै जै आदिनाथ जिन स्वामी । तीनकाल तिहूं जग में नामी ॥
वेष दिगम्बर धार रहे हो । कर्मो को तुम मार रहे हो ॥
हो सर्वज्ञ बात सब जानो । सारी दुनियां को पहचानो ॥
नगर अयोध्या जो कहलाये । राजा नाभिराज बतलाये ॥4॥
मरुदेवी माता के उदर से । चैत वदी नवमी को जन्मे ॥
तुमने जग को ज्ञान सिखाया । कर्मभूमी का बीज उपाया ॥
कल्पवृक्ष जब लगे बिछरने । जनता आई दुखड़ा कहने ॥
सब का संशय तभी भगाया । सूर्य चन्द्र का ज्ञान कराया ॥8॥
खेती करना भी सिखलाया । न्याय दण्ड आदिक समझाया ॥
तुमने राज किया नीति का । सबक आपसे जग ने सीखा ॥
पुत्र आपका भरत बताया । चक्रवर्ती जग में कहलाया ॥
बाहुबली जो पुत्र तुम्हारे । भरत से पहले मोक्ष सिधारे ॥12॥
सुता आपकी दो बतलाई । ब्राह्मी और सुन्दरी कहलाई ॥
उनको भी विध्या सिखलाई । अक्षर और गिनती बतलाई ॥
एक दिन राजसभा के अंदर । एक अप्सरा नाच रही थी ॥
आयु उसकी बहुत अल्प थी । इसलिए आगे नहीं नाच रही थी ॥16॥
विलय हो गया उसका सत्वर । झट आया वैराग्य उमड़कर ॥
बेटो को झट पास बुलाया । राज पाट सब में बंटवाया ॥
छोड़ सभी झंझट संसारी । वन जाने की करी तैयारी ॥
राव हजारों साथ सिधाए । राजपाट तज वन को धाये ॥20॥
लेकिन जब तुमने तप किना । सबने अपना रस्ता लीना ॥
वेष दिगम्बर तजकर सबने । छाल आदि के कपड़े पहने ॥
भूख प्यास से जब घबराये । फल आदिक खा भूख मिटाये ॥
तीन सौ त्रेसठ धर्म फैलाये । जो अब दुनियां में दिखलाये ॥24॥
छै: महीने तक ध्यान लगाये । फिर भजन करने को धाये ॥
भोजन विधि जाने नहि कोय । कैसे प्रभु का भोजन होय ॥
इसी तरह बस चलते चलते । छः महीने भोजन बिन बीते ॥
नगर हस्तिनापुर में आये । राजा सोम श्रेयांस बताए ॥28॥
याद तभी पिछला भव आया । तुमको फौरन ही पड़धाया ॥
रस गन्ने का तुमने पाया । दुनिया को उपदेश सुनाया ॥
पाठ करे चालीसा दिन । नित चालीसा ही बार ॥
चांदखेड़ी में आय के । खेवे धूप अपार ॥32॥
जन्म दरिद्री होय जो । होय कुबेर समान ॥
नाम वंश जग में चले । जिनके नहीं संतान ॥
तप कर केवल ज्ञान पाया । मोक्ष गए सब जग हर्षाया ॥
अतिशय युक्त तुम्हारा मन्दिर । चांदखेड़ी भंवरे के अंदर ॥36॥
उसका यह अतिशय बतलाया । कष्ट क्लेश का होय सफाया ॥
मानतुंग पर दया दिखाई । जंजीरे सब काट गिराई ॥
राजसभा में मान बढ़ाया । जैन धर्म जग में फैलाया ॥
मुझ पर भी महिमा दिखलाओ । कष्ट भक्त का दूर भगाओ ॥40॥
॥ सोरठा ॥
पाठ करे चालीसा दिन, नित चालीसा ही बार ।
चांदखेड़ी में आय के, खेवे धूप अपार ॥
जन्म दरिद्री होय जो, होय कुबेर समान ।
नाम वंश जग में चले, जिनके नहीं संतान ॥
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